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Wednesday, May 24, 2023

क्या वैदिक काल में सप्ताह थे जैसे आज हैं? यदि नहीं तो वार के अनुसार रखे गए व्रत और टोटके कैसे पूरे होते?

क्या वैदिक काल में आज के अनुसार सप्ताह होते थे? अगर नहीं तो वारों के हिसाब से रखे गए व्रत और टोटके कैसे पूरे होते होंगे? Vedic civilization,

 


वैदिक काल में सप्ताह (week) नहीं होते थे जैसे आज के दिनों में होते हैं। वैदिक समय में समय के आधार पर प्रभावी आयोजन किया जाता था और कार्यक्रम विवरण यथावत तय किए जाते थे।


वैदिक काल में, व्रत और टोटके वारों (दिनों) के आधार पर पूरे होते थे। ज्यादातर व्रत और टोटके विशेष दिनों पर रखे जाते थे जैसे कि सोमवार के दिन कार्यान्वयन किया जाता था जो कि भगवान शिव को समर्पित होता है। इसी तरह, शुक्रवार को वैष्णव देवी का पूजन किया जाता था और शनिवार को भगवान शनि के व्रत और पूजा किए जाते थे।


वैदिक साहित्य में व्रतों, टोटकों और उपायों के बहुत सारे स्रोत हैं जिनमें विभिन्न दिनों पर आधारित व्रतों की जानकारी उपलब्ध होती है। यदि आपको किसी विशेष व्रत या टोटके के बारे में जानकारी चाहिए, तो आप वैदिक साहित्य को अध्ययन कर सकते हैं या पंडित या ज्योतिषी से संपर्क करके उनसे पूरी जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।


वैदिक साहित्य में व्रतों, टोटकों और उपायों के मुख्य स्रोत क्या हैं ?


वैदिक साहित्य में व्रतों, टोटकों और उपायों के लिए कई स्रोत हैं। ये स्रोत विभिन्न पुराणों, ग्रंथों और शास्त्रों में  वेद, उपनिषद, पुराण, गृह्यसूत्र, धर्मशास्त्र, स्मृति ग्रंथ और ज्योतिष ग्रंथों में मिलते हैं। जो निम्नलिखित कुछ प्रमुख स्रोत हैं:

1-श्रुति ग्रंथ: श्रुति ग्रंथ वैदिक साहित्य का मुख्य स्रोत हैं। ये वेदों के रूप में जाने जाते हैं और उनमें मन्त्र, सूक्त, ब्राह्मण आदि शामिल होते हैं। वेदों में व्रतों, पूजा, हवन, यज्ञ, औषधि, ज्योतिष आदि के बारे में विवरण दिया गया है।

2-स्मृति ग्रंथ: स्मृति ग्रंथ वेदों के बाद के समय के साहित्य का मुख्य स्रोत हैं। इनमें आपस्तम्ब, गौतम, मनु आदि स्मृतिकारों द्वारा रचित ग्रंथ शामिल होते हैं। ये ग्रंथ व्रतों, उपासना, धर्मनिरपेक्षता, आचार-व्यवहार, जीवन शैली आदि के बारे में विवरण देते हैं।

3-पुराण: पुराणों में वेदों के विस्तार और व्याख्यान के साथ ही व्रतों, उपासना, तप, मंत्र, यंत्र, ज्योतिष, कर्मकांड, प्रतिष्ठा आदि के बार


4-वेद: वेद संस्कृति का महत्वपूर्ण स्रोत है और उसमें व्रतों, टोटकों और उपायों की जानकारी दी गई है। अध्यात्मिक और यज्ञों से संबंधित विभिन्न व्रतों और उपायों का वर्णन वेदों में मिलता है।

5-उपनिषद: उपनिषदों में आत्मा, ब्रह्म, ज्ञान और साधनाओं के विषय में गहन ज्ञान दिया गया है। ये प्राचीन ग्रंथ व्रतों और उपायों के विषय में आदर्शों और मार्गदर्शन के रूप में भी स्वीकार किए जाते हैं।

6-पुराण: हिंदू धर्म के प्रमुख ग्रंथों में से कई पुराण व्रतों, टोटकों और उपायों के विषय में विस्तारपूर्वक बताते हैं। श्रीमद् भागवत पुराण, विष्णु पुराण, शिव पुराण, देवी भागवत पुराण आदि प्रमुख पुराण हैं जो इस प्रकार की जानकारी प्रदान करते हैं। 




वैदिक काल के दौरान व्रत कौन थे?


वैदिक काल में कई व्रत अपनाए जाते थे, जिनमें से कुछ महत्वपूर्ण व्रत निम्नलिखित थे:

1-सोमवार व्रत (Somvar Vrat): सोमवार को भगवान शिव का व्रत रखा जाता था। इस व्रत में शिवलिंग की पूजा की जाती थी और सोमवार को स्थानीय शिव मंदिर में जाकर आराधना की जाती थी।

2-वर्षा ऋतु व्रत (Varsha Ritu Vrat): वर्षा ऋतु के आगमन के समय विशेष व्रत रखे जाते थे जो वृष्टि देवी और भगवान इंद्र की पूजा एवं आराधना के लिए किए जाते थे।

3-नवरात्रि व्रत (Navaratri Vrat): नवरात्रि व्रत नौ दिनों तक चलने वाला एक महत्वपूर्ण व्रत था जिसमें देवी दुर्गा की पूजा एवं आराधना की जाती थी।

4-पूर्णिमा व्रत (Purnima Vrat): पूर्णिमा के दिन व्रत रखने की प्रथा थी, जिसमें चंद्रमा देवता की पूजा और अर्घ्य की जाती थी।

5-एकादशी व्रत (Ekadashi Vrat): हर द्वादशी तिथि को एकादशी व्रत रखा जाता था, जिसमें भगवान विष्णु की पूजा और व्रत के दौरान उपवास की जाती थी।

6-सोमवार व्रत: सोमवार को भगवान शिव का विशेष दिन माना जाता था। इस दिन के व्रत में भगवान शिव की पूजा और अर्चना की जाती थी। यह व्रत शिव भक्ति और शुभ कार्यों की प्राप्ति के लिए किया जाता था।

7-वैष्णव व्रत: वैष्णव व्रत विष्णु भगवान और उनकी अवतारों के पूजन और स्मरण के लिए आयोजित किए जाते थे। इनमें जन्माष्टमी व्रत, एकादशी व्रत (परमाशिवरात्रि, द्वादशी, एकादशी), रामनवमी व्रत आदि शामिल थे।

8-सूर्य व्रत: सूर्य भगवान को उच्चारण, पूजा और ध्यान के लिए व्रत रखे जाते थे। इनमें छठ पूजा, सूर्य षष्ठी व्रत आदि शामिल थे।

9-गणेश व्रत: भगवान गणेश के व्रत भी वैदिक काल में आयोजित किए जाते थे। इनमें विनायक चतुर्थी, संकष्टी चतुर्थी व्रत, आदि शामिल थे।


10-यज्ञोपवीत धारण: यज्ञोपवीत (सवितृवारी) को वेदिक धर्म में महत्वपूर्ण माना जाता था। यह एक संस्कार होता था जिसमें त्रिकाल संध्या वंदन के साथ पुष्टिकर्म और मंत्रों का उच्चारण किया जाता था।

11-अग्निहोत्र: अग्निहोत्र यज्ञ एक महत्वपूर्ण व्रत था जिसे ग्रहस्थों द्वारा आचरण किया जाता था। इसमें दिनचर्या, संध्यावंदन और अनुष्ठान का समावेश होता था।


12-शुक्रवार व्रत: शुक्रवार को वैष्णव देवी (लक्ष्मी) को समर्पित व्रत के रूप में माना जाता था। 





वैदिक काल में व्रत कितने प्रकार के होते हैं?



व्रत वैदिक और हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण आध्यात्मिक अभ्यास हैं जिसमें व्यक्ति धार्मिक नियमों और साधनाओं का पालन करते हुए आहार और आचरण में संयम रखता है। व्रतों के कई प्रकार होते हैं जो निम्नलिखित हैं:

1-निर्जल व्रत: इस व्रत में व्यक्ति अन्न, पानी, और दूसरे विषयों से पूर्णता त्याग करता है। यह व्रत आमतौर पर धार्मिक उत्सवों या विशेष अवसरों पर रखा जाता है।

2-उपवास: उपवास में व्यक्ति खाने-पीने की सीमा रखता है और कुछ विशेष आहार या विषयों का त्याग करता है। यह व्रत आमतौर पर विशेष धार्मिक और आध्यात्मिक प्रयोजनों के लिए रखा जाता है।

3-जीवर्या व्रत: इस व्रत में व्यक्ति खाने-पीने की सीमा रखता है और केवल जीवर्या (दाना, अनाज, फल, शाक, और दूध) ही उपभोग करता है। यह व्रत जैन धर्म में प्रचलित है।

4-व्रतारंभ व्रत: व्रतारंभ व्रत एक प्रकार का व्रत है जो व्रत की शुरुआत करने के लिए किया जाता है। यह व्रत उस समय किया जाता है जब कोई व्यक्ति अपने नये व्रत की शुरुआत करना चाहता है और व्रत के पूर्णता और सम्पन्नता की कामना करता है।


5-नैमित्तिक व्रत: ये व्रत किसी विशेष अवसर, तिथि, उत्सव या घटना के अनुसार मनाए जाते हैं। उदाहरण के लिए, नवरात्रि, दीपावली, श्रावण सोमवार व्रत आदि।


6-प्रायश्चित्तिक व्रत: प्रायश्चित्तिक व्रत व्यक्ति के द्वारा किए जाने वाले व्रत हैं जो पाप या दोष की प्रायश्चित्ति के लिए किए जाते हैं। ये व्रत धार्मिक और आध्यात्मिक साधना का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं, जो व्यक्ति को उनके द्वारा किए गए पापकर्मों के प्रति पश्चाताप, परिशुद्धि और समर्पण का अनुभव कराते हैं।



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धन्यबाद !

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